Thursday, August 1, 2019

इन्तजार


इन्तजार

इश्क़ का खंजर कुछ यूं निकाला उसने,
कि हम क़त्ल भी हुए और एक आह भी न आयी |

चले थे हम साथ इस दरिया में उंगलियों में उंगलिया पिरोये,
होश आया तो खुद को पाया आँखें भिगोये |

वो थे अब ओझल, जिंदगी के नए सफर पे  कुछ नए सपने संजोये,
लिख हाथ पे मेरे अलविदा और कर  मुझे मुझसे जुदा |

उसकी मौजूदगी का अहसास, है आज भी मुझमे कहीं ,
ढूंढ़ती आँखे उन्हें और जैसे मानो कोई आहट आयी |


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