Sunday, July 26, 2020

विरोधाभास

समन्दर की गहराई नही होती,
छूट जाए हाथ तो जुदाई नही होती।
ग़मों का जिक्र मुसाफ़िर से करो, 
शाम होती है पर सुनवाई नही होती।

बातें तो करता ही है ज़माना,
ना मानिये तो जग हंसाई नही होती।
और चाह के भी कोई साथ न दे पाए,
तो रख उम्मीद, क्योकि ऐसे दामन में बेवफाई नही होती।


Friday, April 17, 2020

कितना गैर जरूरी था मैं


जी करता है मौन ही रह लूँ, किसी राह का पत्थर बनकर ।

टकराएगा जब कोई मुसाफिर, सह लूँ बस तब ठोकर बनकर ।



देख के पतझड़ के पत्तों को, घबराता है ये मन अंदर ।

हरे भरे रहने की ख्वाहिश, क्यूँ रखता हूँ अपने अंदर ।



जन्म हुआ था घोर रात्रि में, नाम दिया था दीपक सुन्दर ।

रौशनी को चला दिखाने, मैं लोगो को जो थी अंदर ।



शायद भूल गया मैं खुद को, वजूद था मेरा बस बंद कमरे में।

छोड़ गए सब भोर हुई जब, मैं खोया था एक सपने में ।



एहसास यहाँ तक नहीं रुका था, क्या है दीपक तले पता था ।

किंचित भी मुझे ज्ञान नहीं था, परन्तु वो अभिमान नहीं था ।



नभ प्रकाश को शोभित करते, जल अर्पण और सुन्दर फूल ।

जलना जीवन पर्यन्त कुटीर में, है तले अँधेरा अपने भूल ।



चला प्रकाश नभ तक पहुंचाने, पर था मैं धरती की धूल ।

कितना गैर जरूरी था मैं, अपनी मर्यादा को भूल ।।

Tuesday, March 31, 2020

सफर

सफर

इश्क़ नादान है, अंजाम की फिक्र कहाँ करता है,
ये तो अश्क़ है, जो दर्दो को बयांन करते हैं 


राख करती है इशारा कि कोई हस्ती थी, 
वरना यादों में दफन किसकी है पता किसको है 

Silence



इश्क़ नादान है, अंजाम की फिक्र कहाँ करता है,

ये तो अश्क़ है, जो दर्दो को बयांन करते हैं ।



अब किस हक़ से तुझे रोकूं, सोच के टूट जाता हूँ,

चाँद तो आज भी एक ही है, बस देखा दो झरोखों से जाता है ।



मेरे हालात पूछने की यूँ तो जरुरत क्या है,

जब तेरी धड़कनो की रिहाइश, मेरे सीने में हैं ।



जियें है जो हर पल साथ हमने, वो अब बंट नहीं सकते,

इन पलकों से ये बादल अब छँट नहीं सकते।



तुझे छूने का अधिकार, तो खो चुका हूँ मैं,

खुद से जिक्र करने की इजाज़त भी न छीनो मुझसे।



अब तेरी यादों से ही जीने का सहारा है अता है मुझको,

फर्क मरने और पल पल मरने का पता है अब मुझको ।


Wednesday, March 18, 2020

रिश्ता

                                 रिश्ता

न जाने कौन सी दुआ पढ़ते है वो मेरे हक़ में,
जो मुक्कदर में नहीं वो करना चाहता हूँ मैं ।
वो समझदारी का हर कदम चलते हैं,
मैं हर कदम पे होश खोना चाहता हूँ ।
उनको शिकायत है अब मेरे बर्ताव से,
देते हैं हालातों की दुहाई हर बात पे ।
फिक्र कैसे न करूँ उनकी और रोकूं अपने जज्बातों को,
क्योंकि काबिज है कोई और अब मेरे हालातों पे।
रिश्ते पिरोये थे कच्चे धागों से, मगर रंग पक्के हैं ।
दर्द सीने में छुपा के वो अब भी सच्चे हैं ।
आज उन रंगो पे रंग की परत एक और भी है,
इस दिल में उनके लिए अब इज़्ज़त और भी है ।
सैकड़ो ख्वाब टूटते है तो एक नींद होती है,
पर होश में कमबख्त अब आना कौन चाहता है ।
मेरी हर रात मैं आखिरी ख़याल और हर सुबह की पहली सोच हो तुम,
और वो कहते हैं कि बंद पिंजरे के पंछी को पूछता कौन है ।
मै टूटे हुए आईने की तरह कूड़े में नहीं जाना चाहता,
तू एक बार देख लेता तो हर टुकड़ा ये रंगीन हो जाता ।
सफर ज़िन्दगी भर का है तेरे साथ पर तू मौजूद नहीं,
ये तो अब रूह का रिश्ता है, वरना कौन दूसरे घर जाना चाहता है ।