रिश्ता
न जाने कौन सी दुआ पढ़ते है वो मेरे हक़ में,
जो मुक्कदर में नहीं वो करना चाहता हूँ मैं ।
वो समझदारी का हर कदम चलते हैं,
मैं हर कदम पे होश खोना चाहता हूँ ।
उनको शिकायत है अब मेरे बर्ताव से,
देते हैं हालातों की दुहाई हर बात पे ।
फिक्र कैसे न करूँ उनकी और रोकूं अपने जज्बातों को,
क्योंकि काबिज है कोई और अब मेरे हालातों पे।
रिश्ते पिरोये थे कच्चे धागों से, मगर रंग पक्के हैं ।
दर्द सीने में छुपा के वो अब भी सच्चे हैं ।
आज उन रंगो पे रंग की परत एक और भी है,
इस दिल में उनके लिए अब इज़्ज़त और भी है ।
सैकड़ो ख्वाब टूटते है तो एक नींद होती है,
पर होश में कमबख्त अब आना कौन चाहता है ।
मेरी हर रात मैं आखिरी ख़याल और हर सुबह की पहली सोच हो तुम,
और वो कहते हैं कि बंद पिंजरे के पंछी को पूछता कौन है ।
मै टूटे हुए आईने की तरह कूड़े में नहीं जाना चाहता,
तू एक बार देख लेता तो हर टुकड़ा ये रंगीन हो जाता ।
सफर ज़िन्दगी भर का है तेरे साथ पर तू मौजूद नहीं,
ये तो अब रूह का रिश्ता है, वरना कौन दूसरे घर जाना चाहता है ।